पुलवामा हमले में शहीद हुए वीर जवानों को जौनपुर जिले के जमीन पकड़ी एवम् कोहडे ग्राम सभा में मौन धारण कर एवम् कैंडल मार्च निकालकर श्रद्धांजलि दी गई।
रिपोर्टर मो कलीम अहमद
जिला जौनपुर।
जौनपुर- 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में शहीद हुए हमारे देश के जवानों को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि हेतु जौनपुर जिले के करांजाकला ब्लॉक के अन्तर्गत जमीन पकड़ी एवम् कोहडे ग्राम सभा में सैकड़ों युवाओं ने शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि हेतु मौन धारण एवम् कैंडल मार्च निकाला। हम उस दुख भरे दिन को कभी नहीं भूल सकते जब सुरक्षाकर्मियों को14 फरवरी 2019 को, जम्मू श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर भारतीय सुरक्षा कर्मियों को ले जाने वाले सी०आर०पी०एफ० के वाहनों के काफिले पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें 45 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गयी थी। ... यह हमला जम्मू और कश्मीर के पुलवामा ज़िले के अवन्तिपोरा के निकट लेथपोरा इलाके में हुआ था।
चंद्रकेश प्रजापति के निर्देशन में कैंडल मार्च निकाल रहे सैकड़ों युवाओं ने भारत माता की जय, हिंदुस्तान ज़िंदाबाद, इंडियन आर्मी ज़िंदाबाद, जय जवान जय किसान जैसा नारा बुलंद किया। चंद्रकेश प्रजापति ने कहा कि आज का दिन हमारे लिए काला दिवस के रूप में है। क्योंकि इसी दिन हमारे देश के जवानों का काफिला जब अपने गंतव्य स्थान तक जाने के लिए निकला तो बीच मार्ग में ही एक 300 किलो के आरडीएक्स से भरा वैन बस से टकराया और विस्फोट हुआ जिसमें 40 से ज़्यादा जवान शहीद हुए।
पाकिस्तान के द्वारा यह की गई कायराना हरकत किसी भी रूप में क्षम्य नहीं है। भारत देश वसुधैव कुटुंबकम् वाला देश है इस देश ने सदैव विश्व को भाईचारा का संदेश दिया। लेकिन नापाक मंसूबा रखने वाले देश पाकिस्तान ने जो हरकत की वह अत्यंत पीड़ादायक एवम् निंदनीय है। ऐसी हरकत केवल और केवल कायर ही कर सकता है। आइए इस दुख भरी घड़ी में हम ये प्रण करें कि जातिवाद, क्षेत्रवाद, भाषावाद संप्रदाय-वाद से ऊपर उठकर देशहित में कार्य करें। कहीं न कहीं हम किसी न किसी रूप में निहायत ही स्वार्थी और निर्मम हो चले हैं। हम...हमें अपनी सोच, अपने आचरण, अपने विचारों को भी खंगालना चाहिए देश इन्हीं सबसे जुड़कर रत्ती-रत्ती होकर बनता है...चाहे सोशल मीडिया हो या चौराहे की बहस अपने विचारों और भावनाओं को लेकर कितने गंभीर हैं हम, यह सवाल अपने आप से पूछने का वक्त है...देश की एकता को छिन्न-भिन्न करने के विचार अगर आपके मन में भी पलते हैं, अगर आप भी मैं, मेरा, मेरा परिवार, मेरा शहर, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा संप्रदाय, मेरा राज्य, 'मेरा आरक्षण' से ऊपर उठकर नहीं सोच पाते हैं तो माफ कीजिएगा कोई अधिकार नहीं इस मौके पर किसी भी तरह की कोरी भावुकता को परोसने का...44 का आंकड़ा उठाकर देख लीजिए यह सिर्फ आंकड़ा नहीं है हमारे गौरव, सपनों और अरमानों का खून है...
इनमें कोई हिन्दू, मुस्लिम, जैन, ब्राह्मण,क्षत्रिय, कश्मीरी, पंजाबी नहीं थे ... वे सब एक थे, एक था उनका धर्म और एक था उनका जज्बा...आज उनकी एक ही पहचान है कि वे देश की सच्ची संतान थे.. हम सेना में नहीं जा सकते पर करोड़ों मन एक साथ एक स्वर में यह तो कह सकते हैं कि मेरा देश पहले है, मैं बाद में... देश की रक्षा करने वालों की 'रक्षा' कौन करेगा? हम, हमारे विचार, हमारी भावनाएं, हमारे हौसले, हमारी संवेदनाएं...हमारी एकता, हमारी अखंडता...हमारी मजबूती...